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आज पता नहीं बहुत दिनों बाद मन आया कुछ लिखने का, बहुत देर तक यही सोचता रहा की क्या लिखा जाये, अब तक तो हमेशा ही तकनीकी विषयों पर लिखा है पर पिछले कुछ दिनों पर नजर डाली तो ऐसा लगा की कुछ खास नया सा किया नहीं, और फिर अचानक ध्यान आया की भाई ये जो तू टाइप कर रहा है इसी में तो तूने पिछले दिनों काम किया है, शायद ये पहली बार ही है की हिंदी में ब्लॉग लिखने का साहस कर रहा है, बस मन बना लिया भारतीय भाषाओ पर कुछ लिखा जाये |
भारतीय भाषाओँ का इतिहास बहुत पुराना है, मै कोई इतिहासकार नहीं हूँ इसलिए इसपर कोई टिपण्णी करना उचित नहीं इसलिए अपने तजुर्बे से शुरू करता हूँ, पहली बार मैंने भारतीय भाषा में कंप्यूटर पर टंकण वर्ष १९९८ में किया था, मजे कि बात यह है कि जिस गलत विधि से १९९८ में टंकण मैंने किया वह विधि आज भी पूरे भारत में प्रचिलित है, मुझे अच्छी तरह याद है कि वर्ष २००० के आस पास ऐसे सॉफ्टवेर उपलब्ध थे जो कि उस समय कि प्रचिलित टंकण से भिन्न काम करते थे जैसे कि अंग्रेजी के Hindustan को हिंदी में हिंदुस्तान दिखा देते थे पर उस समय मुझे तनिक भी आभास नहीं था कि ये कैसे काम करते हैं, और इन्हें इस्तेमाल करना शुरुवात में तो ठीक लगा पर मुश्किल हो चला इसलिए वही पुराने तरीके पर लौट चला, इसी दौरान मैंने अपनी पहली वेबसाइट बना दी अमर उजाला अखबार की देखा देखी हिंदी भी वेबसाइट पर डाल दी अब किसे पता था की ये गलत तरीका है जिसके कंप्यूटर पर वो फॉण्ट होता उसपर वेबसाइट ठीक ठाक दिख जाती मन खुश रहता किसे पता था की ये कितनी बड़ी गलती है, और वर्ष २००७ तक ऐसा ही चलता रहा, २००७ में जब सिंबिओसिस में दाखिला हुआ नए माहोल में गया अचानक से पता चला की आज तक जो कुछ सीखा था उस्मे बहुत सुधर की जरूरत है, यू तो वर्ष २०००-०१ में पहली बार लिनक्स अपने कंप्यूटर पर डाला था क्योंकि एक मेगजीन के साथ फ्री आया था पर पहले ही दिन डर कर उसे हटा भी दिया था, यहाँ आकार पता चला की FOSS भी कुछ है, और बस एक नयी दुनिया में प्रवेश हुआ और सब बदल गया|
धीरे धीरे नई तकनीक पता चलती रही, कॉलेज में इन्टरनेट कम से कम काशीपुर या बनारस की तुलना में बहुत अच्छा था, मेरा ज्यादातर समय कॉलेज में ही बीतता था नई नई जानकारी मिलती पड़ता रहता FOSS की सोच ने प्रभावित किया बहुत लोगों से मिला जानकारी बड़ी UNICODE का भी पता चला, बस अब क्या था गूगल बाबा तो साथ थे ही, CMS के बारे में भी पढ़ा काशीपुर की वेबसाइट पूरी तरह से बदल चुकी थी द्रुपल/कम्युनिटी/FOSS ही दिमाग में रहने लगा इसी दौरान द्रुपल का लोकीकरण प्रोजेक्ट शुरू हुआ और मै हिंदी एवं मराठी के लोकीकरण का काम करने लगा खुद भी हिंदी के शब्द जोड़ता रहता और लोगों के अनुवाद भी देखने लगा, उस समय कोई भी ये जिम्मेदारी लेने वाला आगे नहीं आया तो मैंने हिंदी एवं मराठी का द्रुपल लोकीकरण प्रबंधक होने की जिम्मेदारी लेली, बहुत मजा आने लगा, इसी बीच पुणे में ही नौकरी भी लग गयी ऑफिस में ज्यादातर अंग्रेजी में ही काम होता था जिसके कारण कुछ लोकीकरण का काम कम होता चला गया पर कुछ न कुछ करता ही रहता था |
आपको ज्ञात होगा की पिछले करीब २ वर्षों से मै उत्तराखंड मुक्त विश्विद्यालय में कार्यरत हूँ, यह पहली संस्था है जहाँ मुझे अंग्रेजी के साथ साथ दूसरी भाषा जैसे कि हिंदी, संस्कृत एवं उर्दू पर भी अत्यधिक कार्य करने का मौका मिला यहाँ से पहले सॉफ्टवेर/वेबसाइट के लोकीकरण पर काम किया था कुछ खुद करता कुछ गूगल बाबा कि मदत से काम निकल जाता था पर यहाँ इससे काम चलना मुश्किल था क्योंकि यहाँ तो रोज मर्राह का कार्य भी हिंदी में होता है और सब लोग वही पुराने वाले तरीके से काम करते थे जो की इन्टरनेट पर नहीं चल सकता था, खुद के लिए भी कुछ ऐसा ढूँढना था जो अच्छा हो और जो बाकी सबको भी सिखाया जा सके, खुद को बदलना आसान होता है और में तो २००७ से ही इस बदलाव के लिए तैयार था सिंबिओसिस ने ये सिखा दिया था की कुछ नया सीखने के लिए पुराना गलत भुलाना पड़ता है बस क्या था वो सब फोंट्स सिस्टम से हटाये और कसम खाई की अब इन्हें नहीं इस्तेमाल करूँगा, बाकी सबको भी धीरे धीरे UNICODE के बारे मै बताया शुरुवात से UNICODE में टंकण करना बताया पुराने टंकित को UNICODE में परिवर्तित करना सीखा और समझाया कई बार बहस भी हुई पर आखिरकार परिणाम अच्छा ही रहा, अब संकट था की क्या UNICODE में भी अलग अलग तरीके से दर्शाया जा सकता है क्या UNICODE को प्रेस वाले छाप सकते हैं, सबने मना किया पर मुझे गौरव पन्त सर की बात याद आई की जो प्रिंट हो सकता है वो प्रेस में छप भी सकता है बस अब क्या था ठान लिया की अब ये छापेगा भी |
शुरुवात अपने घर से होती है ५० वर्षों से भी अधिक से छापते आ रहे पंचांग को इस वर्ष UNICODE में बनाया और लग कर छपवा भी लिया, घर की समस्या सुलझी अब बारी विश्विद्यालय की, छप तो जायेगा ही ये अब तक पता चल गया था, अब खोज चालू हुई उन फोंट्स की जो UNICODE का समर्थन करते हुए अच्छे भी दिखे FOSS ने ओपन टाइप फोंट्स दिए खोज खतम हुई C-DAC द्वारा निर्मित GIST ओपन टाइप फोंट्स पर बस अब क्या है टंकित लेखो को प्रेस, वैब, मोबाइल के लिए अलग अलग नहीं करना पड़ता सभी लोग टंकण कर लेते हैं और वो सदियों पुराने Alt+Code भी याद नहीं रखने पड़ते|
हिंदी में ब्लॉग लिखने का ये मेरा पहला प्रियास है कुछ गलतियाँ जरूर होंगी अगले ब्लॉग पोस्ट में और अच्छा लिखने का प्रयास करूँगा एवं भारतीय भाषाओ को UNICODE में आसानी से कैसे टंकित करे इसपर चर्चा करूँगा !
bahut badhiya likha DOST
Yar aisi hindi likhoge to do unit type ke liye le lo
..\kadduuuu----hum jante the ki tum yahi kahoge
Dr subodh